- प्रदेश स्तर पर पुष्प, शाकभाजी एवं फल उत्पादकों को प्रोत्साहन देना तथा उन्हें वैज्ञानिक ढंग से उत्पादन एवं रख-रखाव तथा विपणन की नवीन तकनीकी जानकारियों से परिचित कराना।
- पुष्प उत्पादकों के मध्य स्वच्छ प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करना एवं इसे एक लाभप्रद व्यवसाय के रूप में प्रोत्साहित करना।
- मौन-पालन से सम्बन्धित जानकारी प्रदान कर मधु उत्पादकों को लाभप्रद व्यवसाय के रूप में अपनाने की प्रेरणा देना।
- घरेलू महिलाओं एवं बेरोजगार युवक/युवतियों को घर बैठे खाद्य प्रसंस्करण से
सम्बन्धित नवीन तकनीकी जानकारी देकर उनके द्वारा तैयार किए गये उत्पादों की बिक्री द्वारा उन्हें रोजगार के अवसर प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित करना तथा इसे लघु उद्योग के रूप में विकसित करने हेतु उत्साहित करना।
- ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में गृह-वाटिकाओं एवं आवासीय उद्यानों तथा सार्वजनिक उद्यानों के मध्य स्वस्थ प्रतिस्पर्धा जागृत कर उन्हें उचित ढंग से पुरस्कृत करना।
- प्रदेश में औषधीय एवं सगंध पौधों के उत्पादकों को बढ़ावा देना तथा उनके लाभों से जन-साधारण को अवगत कराना।
- महिलाओं, बच्चों एवं मालियों के मध्य अलग-अलग कलात्मक पुष्प सज्जा तथा
रंगोली आदि की प्रतिस्पर्धा करवा कर उन्हें उत्साहित करना एवं उन्हें उचित ढंग से पुरस्कृत करना।
- भारत सरकार एवं विभिन्न प्रदेश सरकारों द्वारा संचालित संस्थानों के वैज्ञानिकों द्वारा औद्यानिक एवं कृषि क्षेत्र में विकसित नवीनतम तकनीक का पदर्शन कर उनके विषय में विशेषज्ञों द्वारा जन-मानस को जानकारी उपलब्ध कराना।
उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु पुष्प प्रदर्शनी आयोजित की जाती रही है उस समय के लोग बताते हैं कि लखनऊ में पहली पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन 1936 में राजभवन लखनऊ में किया गया था। उसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध के समय 1-2 वर्ष छोड़कर बराबर प्रतिवर्ष इस प्रकार की प्रदर्शनी आयोजित की जाती रही है। आरम्भ में इस प्रदर्शनी का आकार व प्रकार बहुत छोटा तथा लखनऊ में स्थानीय स्तर पर उगाये गये शोभाकार पौधों के गमले, कटे फूलो तक सीमित था। राजभवन में जनता का आना-जाना सीमित होने के कारण जनता की भागीदारी भी सीमित थी। पहले यह शोभाकार पौधे तथा विभिन्न जेलों में कैदियों द्वारा उगाई गई सब्जियों तक ही सीमित रही। धीरे-धीरे इसके आकार एवं प्रकार में बढ़ोत्तरी हुई। पूर्व में औद्यानिक विकास की योजनाये नहीं चल रही थी तथा जिला स्तर पर कोई कर्मचारी विभाग में नहीं था। जैसे-जैसे उद्यान विभाग में औद्यानिक विकास की योजनायें स्वीकृत हुई इन प्रदर्शनी का भी विस्तार हुआ तथा इनका आयोजन प्रदेश में मंडलों के मुख्यालय पर किया जाने लगा तथा इसमें जिलों से शोभाकार पौधे, फल व शाकभाजी के प्रदर्श शामिल किये जाने लगे परन्तु आकार प्रकार में कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हो सकी। गमलों के अतिरिक्त कटे फूलों व फलों को राजभवन से उपलब्ध कराये गये चन्द स्विस कॉटेजों में प्रदर्शित किया जाता था।
पुष्प प्रदर्शनी के इतिहास में वर्ष 1868 1969 1970 मील के पत्थर साबित हुये। इन वर्षों में प्रदेश के राज्यपाल डा० बी० गोपाला रेड्डी थे। उन्हें औद्यानिकी में बहुत रूचि थी। प्रदर्शनी को अधिक प्रसिद्ध आकर्षक, शिक्षाप्रद बनाने के लिये कई नयी श्रेणियाँ शामिल करने के आदेश दिये, जिनके कार्यान्वन के फलस्वरूप इस प्रदर्शनी ने बृहद रूप ले लिया है।
उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के अन्य प्रान्तों जैसे-बंगाल, तमिलनाडू, केरल, महाराष्ट्र, गुजरात इत्यादि प्रदेशों के निवासियों का उ0प्र0 में बसने के उपरान्त ऐसी प्रदर्शनी में उनकी भागीदारी बढ़ाने हेतु सुझाव दिया गया कि महिलाओं के बालों (जुड़े) मे गजरा, वेडी आदि से फूलों का उपयोग करके श्रृंगार किया जाये तथा रंगोली, चाक मेंहदी जावट की प्रतियोगिता भी शामिल की जाये। विदेशी दूतावास जैसे-हालैण्ड,, जर्मनी, इंग्लैंड से आये लोगों द्वारा फलों तथा फूलों से सम्बन्धित फिल्म प्रदर्शनी में दिखाई गई, जिससे अन्य देशों में की गई प्रगति के बारे में प्रदेश की जनता अवगत हो सके।
इसके अतिरिक्त प्रदर्शनी में आने वाली जनता को आने के लिये राजभवन का मुख्यद्वार खोल दिये जाये, जिससे जनता राजभवन उद्यान को देखते हुये प्रदर्शनी स्थल तक पहुंचे तथा राजभवन व जनता की दूरी कम हो। इस प्रदर्शनी को 1971 में महामहिम श्री राज्यपाल द्वारा प्रादेशिक स्तर पर कराने का आदेश दिया गया। तब से इस प्रदर्शनी में प्रदेश स्तर से किसानों के फल, फूल, शाकभाजी व आलू के प्रदर्श इस प्रदर्शनी में प्रदर्शित किये जाते हैं। इस प्रदर्शनी को और अधिक आकर्षक बनाने के लिये प्रदेश व देश के कृषि विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों व विभागों के आकर्षक स्टाल राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, निजी पौधशालाओं, निजी खाद्य प्रसंस्करण इकाईयों एवं निजी कंपनियों के स्टाल इत्यादि भी लगाये जाते हैं। जिससे इस प्रदर्शनी का उद्देश्य और अच्छे ढंग से पूरा होने लगा। तब से अब तक प्रदर्शनी का आकार व प्रकार बढ़ता ही गया तथा जनता की भागीदारी भी बढ़ी। अब यह प्रदर्शनी लखनऊ के सालाना आयोजनों में मुख्य स्थान रखती है तथा औद्यानिक प्रदर्शनी में देश की श्रेष्ठतम प्रदर्शनी के रूप में स्थान रखती है।
वर्ष 2010 में भी महामहिम श्री राज्यपाल श्री बी०एल० जोशी ने कई वर्षों बाद प्रदर्शनी समिति को स्वयं राजभवन में संबोधित करते हुये कई आदेश दिये जैसे महामहिम श्री राज्यपाल महोदय द्वारा जैविक खेती के प्रति जागरूकता के लिये जैविक विधि से उत्पादित किये जा रहे फल-शाकमाजी को प्रदर्शित करने हेतु एक अलग से श्रेणी बनाकर प्रतियोगिता कराये जाने के निर्देश दिये गये, जिससे कि जैविक उत्पादों के लाभ तथा उनकी गुणवत्ता से प्रतिभागियों, दर्शकों को लाभान्वित किया जा सके। इसके अतिरिक्त महामहिम श्री राज्यपाल महोदय द्वारा यह भी निर्देश दिया गया कि प्रदर्शनी के आयोजन को लखनऊ के पर्यटक कलैण्डर में शामिल किया जाये और इसका लाभ पर्यटक भी उठा सकें।